जामा मस्ज़िद -स्थापत्य कला और एकता का प्रतीक
शहर के मध्य भाग में काले संगेखारा पत्थरों से बनी विशाल जामा मस्ज़िद न सिर्फ अपने समय की स्थापत्य कला बल्कि उस समय की सांस्कृतिक एकता की भी मिसाल है। इस मस्ज़िद का निर्माण फारुकी शासक आदिल शाह फारुकी द्वितीच ने कराया था। पाँच साल तक दिन-रात निर्माण कार्य चलने के पश्चात् यह भव्य मस्ज़िद बन कर तैयार हुई। इस मस्जिद में काले पत्थर इस्तेमाल किये गये हैं। मस्ज़िद की लम्बाई 148 फुट और चौड़ाई 52 फुट है। पूरी मस्ज़िद 15 कमानों पर टिकी हुई है। इन कमानों को इस तरह से 96 स्तम्भों के माध्यम से उठाया गया है कि कमान खुद ही मस्ज़िद की छत बन गई है। आगे के स्तम्भों के ऊपरी भाग में सूरजमुखी का फूल उकेरा गया है। मस्ज़िद के अन्दर 5 दालान लम्बाई में और 15 चौड़ाई में बनाये गये हैं। इन दालानों में बैठकर तीन हज़ार से ज़्यादा लोग नमाज़ पढ़ सकते हैं। इस मस्ज़िद की मीनारें 130 फीट ऊँची हैं। इतना ही नहीं, इसमें ईको सिस्टम का भी ध्यान रखा गया है। मध्य कमान के पास ही तीन सीढ़ियाँ इस तरह से बनायी गयीं हैं कि वहाँ खड़े होकर आसानी से सभी लोगों को देखा जा सकता है और बिना लाउड स्पीकर के सभी तक अपनी आवाज़ पहुँचायी जा सकती है। मस्ज़िद के निर्माण के समय ही इसकी कमानों पर अरबी और संस्कृत भाषा में फारुकी शासकों की वंशावली, मस्ज़िद निर्माण का वर्ष, महीना, दिन, पल व घड़ी भी अंकित किये गये हैं। जब यह मस्ज़िद बनाई गई थी उस वक्त इसमें दरवाज़े नहीं थे। कहा जाता है कि मुगल बादशाह जहाँगीर के शासन काल में एक 12 फुट का किवाड़ लगाया गया था। बाद में निज़ामशाही के दौर में ज़ायरीनों के ठहरने के लिए कमरे तथा एक विशाल दरवाज्ञा बनाया गया।
कैसे पहुंचें:
हवाई मार्ग द्वारा
निकटतम हवाई अड्डा इंदोर स्थित है
ट्रेन द्वारा
यह मुंबई-दिल्ली और मुंबई-इलाहाबाद, केंद्रीय रेल मार्ग पर पड़ता है। इस गंतव्य के लिए कई सुपर-फास्ट, एक्सप्रेस ट्रेनें हैं। बुरहानपुर का मुंबई, दिल्ली, आगरा, वाराणसी, ग्वालियर, कटनी, जबलपुर, पिपरिया, झाँसी, भोपाल जैसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों और शहरों से सीधी रेल संपर्क है।
सड़क के द्वारा
महाराष्ट्र राज्य की सीमा के करीब होने के कारण, भुसावल, जलगाँव, औरंगाबाद आदि के लिए बहुत अच्छी सड़क है। बुरहानपुर से भोपाल के मध्य दूरी व्हाया इंदौर ३६७ किमी है एवं व्हाया मुंदी ३२६ किमी है |