गुरुद्वारा बड़ी संगत-अनमोल धरोहर
तेजोमयी ताप्ती का तट सिर्फ राज सत्ताओं का ही साक्षी नहीं है बल्कि इसने उस वीर योद्धा और अप्रतिम व्यक्तित्व को भी बड़े करीब से देखा है जिसने शक्ति और भक्ति को एकाकार कर दिया, जिन्हें आज पूरा विश्व ‘गुरु गोविन्द सिंह’ के नाम से जानता है। सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह का व्यक्तित्व इतना विराट था कि महज़ नौ वर्ष की उम्र में वे गुरु के पद पर आसीन हुए और अन्याय के खिलाफ अपने चारों पुत्रों का बलिदान किया। उनके साहस और युद्ध कला का लोहा तो मुगल सल्तनत भी मानती थी। हमेशा सैनिक के वेश में रहने वाले गुरु गोविन्द सिंह जानते थे कि यदि संपूर्ण भारत को एक रखना है तो ऐसा पंथ बनाना होगा जो ऊँच-नीच पर नहीं बल्कि साहस और करुणा भाव से भरा हो। उनकी इसी दृष्टि ने विश्व को ‘खालसा पंथ’ का उपहार दिया। खालसा पंथ की स्थापना करके उन्होंने मुगल सम्राट औरंगज़ेब तक को झुकने पर विवश कर दिया था। करुणा भाव इतना था कि शत्रु भी उनका मित्र बन जाता था। जिस मुगलिया सल्तनत के अन्याय के खिलाफ उनकी शमशीर उठी थी, उसी मुगलिया सल्तनत के वारिस औरंगजेब के बड़े पुत्र मुअज़्ज़म (बहादुरशाह) को दिल्ली की गद्दी गुरु गोविन्द सिंह की वजह से मिली थी। जांजू की लड़ाई में गुरु गोविन्द सिंह ने उसका साथ दिया। उनकी वजह से ही मुअज़्ज़म शहंशाह-ए-हिन्द बना। कहा जाता है कि जब गुरु गोविन्द सिंह दिल्ली लौटने वाले थे तब मुअज्जम ने उनसे विनती की, कि वे उसके साथ दक्षिण की यात्रा पर चलें, क्योंकि औरंगज़ेब के चौथे बेटे कामबख्श ने दक्षिण में विद्रोह कर दिया था। गुरु गोविन्द सिंह ने मुअज़्ज़म का यह निवेदन स्वीकार कर लिया। वे भी सिक्ख संप्रदाय का विस्तार तथा राजस्थान के राजाओं और मराठाओं से हाथ मिलाकर अपनी स्थिति और मजबूत करना चाहते थे। जब गुरु गोविन्द सिंह नर्मदा और ताप्ती नदी पार करके बुरहानपुर पहुँचे तो उनके अनुवादियों के निवेदन पर वे वहाँ 6 माह 9 दिन रहे। इस दौरान उन्होंने तय किया कि उनके बाद ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ ही सिक्खों के गुरु होंगे तथा नांदेड़ में प्राण त्यागते समय इसकी घोषणा की। गुरुद्वारे के पास ही वह कुटिया भी है, जहाँ गुरु गोविन्द सिंह रुके थे। उसी के पास गुरू गोविन्द सिंह द्वारा दीक्षित पहले संत-हठेहसिंह की समाधि भी है। यही नहीं, ताप्ती नदी के तट पर सिक्खों के पहले गुरु ‘गुरु नानक देव’ भी आये थे।
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कैसे पहुंचें:
हवाई मार्ग द्वारा
निकटतम हवाई अड्डा इंदोर स्थित है |
ट्रेन द्वारा
यह मुंबई-दिल्ली और मुंबई-इलाहाबाद, केंद्रीय रेल मार्ग पर पड़ता है। इस गंतव्य के लिए कई सुपर-फास्ट, एक्सप्रेस ट्रेनें हैं। बुरहानपुर का मुंबई, दिल्ली, आगरा, वाराणसी, ग्वालियर, कटनी, जबलपुर, पिपरिया, झाँसी, भोपाल जैसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों और शहरों से सीधी रेल संपर्क है।
सड़क के द्वारा
महाराष्ट्र राज्य की सीमा के करीब होने के कारण, भुसावल, जलगाँव, औरंगाबाद आदि के लिए बहुत अच्छी सड़क है। बुरहानपुर से भोपाल के मध्य दूरी व्हाया इंदौर ३६७ किमी है एवं व्हाया मुंदी ३२६ किमी है |