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इतिहास

मध्‍यकालीन इतिहास:- 1536 इस्‍वी में गुजरात विजय अभियान के पश्‍चात हुमायू बडौदा, भरूच और सूरत होते हुए बुरहानपुर और असीरगढ आये थे । राजा अली खां(1576;1596 ई) जो आदिलशाह के नाम से जाने जाते थे जिन्होंने अकबर की खानदेश अभियान के दौरान (1577 ग्रीष्‍म) अधीनता स्‍वीकारते हुए अपनी शाह की उपाधि का त्‍याग कर दिया इसी घटना से मुगलों की दक्षिण की नीति बदल गई । इसके उपरान्‍त खानदेश को आधारस्‍थल बनाकर यहॉं से दक्षिण के अभियान चलाए जाने लगे । राजा अली खान पे कई ख्‍यात भवन बनाऐ । जैसे : असीरगढ के उपर (1588 ई) जामा मसजिद, बुरहानपुर की जामा मसजिद (1590 ई) असीरगढ में ईदगाह; बुरहानपुर में मकबरे और सराय, जैनाबाद में सराय एवं मसजिद इत्‍यादि

राजा अली खान के उत्‍तराधिकारी बहादुरखान(1596-1600 ई) ने मुगलों से अपनी स्‍वतंत्रता की घोषणा कर दी और अकबर और उसके राजकुमार दानियाल को मान्‍यता नहीं दी । कुपित होकर अकबर ने 1599 में बुरहानपुर की ओर प्रस्थान किया और 8 अप्रेल 1600 ई. में बिना किसी अवरोध के नगर पर कब्‍जा कर लिया । इस दौरान अकबर असीरगढ के चार दिवसीय व्‍यक्तिगत दौरे पर भी गए ।

शाहजहॉं का अभियान:-1617 में जहांगीर ने राजकुमार परविज की जगह पर राजकुमार खुर्रम को दक्‍खन का राज्‍यपाल नामांकित किया गया और उसे शाह की उपाधि दी । खुर्रम के नेतृत्‍व में मुगलसेना व्‍दारा शांतिपूर्ण विजयों से प्रसन्‍न होकर जहॉंगीर ने 12 ऑक्‍टोबर 1617 ई. में उसे शाहजहॉं की उपाधि से सम्‍मानित किया । 1627 में जहांगीर की मृत्‍युपश्‍चात शाहजहॉं मुगल बादशाह बनें । 1 मार्च 1630 को दक्‍खन में असंतोषजनक परिस्थितियों के कारण, मुगलगबादशाह शाहजहॉं बुरहानपुर आए । इस समय वे बीजापुर, गोलकुण्‍डा और अहमदनगर अभियानों के चलते दो वर्षों तक यहॉं रहे । इन अभियानों के दौरान ही शाहजहॉं की प्रिय बेगम मुमताज महल का प्रसवपीड़ा से निधन हो गया । मुमताज महल का शव ताप्‍ती के उस पार जैंनाबाद के एक बगीचे में दफन किया गया था । उसी वर्ष दिसंबर के शुरू में (1631 ई), मुमताज महल के शारिरीक अवशेष आगरा पहुंचाए गए । 1632 में महावत खान को दक्‍खन का वाइसराय बनाकर शाहजहॉं ने बुरहानपुर से आगरा प्रस्‍थान किया ।

आधुनिक इतिहास :-16 वीं शताब्‍दी के मध्‍य से लेकर अठारहवीं शताब्‍दी तक बुरहानपुर सहित निमाड क्षेत्र औरंगजेब, बहादुर शाह, पेशवा, सिंधिया, होलकर, पवार और पिण्‍डारियों से प्रभावित रहा । बाद में 18वीं शताब्‍दी की शुरूआत में निमाड़ क्षेत्र का प्रबंधन ब्रिटिश के अधीन आ गया ।

अंग्रेजो के विरूद्ध देशव्‍यापी 1857 के महान विप्‍लव से बुरहानपुर भी अछुता नहीं रहा । तात्‍या टोपे ने निमाड़ क्षेत्र से बाहर जाने के पूर्व खण्‍डवा, पिपलोद इत्‍यादि जगहों पर पुलिस थानों और शासकीय भवनों को आग के हवाले किया था ।

स्‍वाधीनता आंदोलनों से बुरहानपुर भी प्रभावित रहा ।